सम्बन्धों में माधुर्य उत्पन्न कीजीय
जहाँ धर्म है, जहाँ सेवा का पवित्र भाव है और जहाँ बड़ों के महान गुंण और आदर्शों को जीवन का आधार बनाया जाता है, जहाँ गुरू का मान और उनकी पूजा की जाती है उस घर में कभी विघटन नहीं होता वरन निरन्तर सम्बन्धों में माधुर्य बढ़ता ही जाता है! ऐसे परिवारों में भाई भाई के बीच दीवारें नहीं बना करती, भाई भाई के खून का प्यासा नहीं होता! चाणक्य ने कहा है कि आप अपने बच्चे को धन दो या न दो लेकिन उत्तम शिक्षा और सुसंस्कार अवश्य दो! संस्कारों के अभाव में धन बच्चों को बिगाड़ने में हे सहयोगी बनता है!जिस घर में बच्चे संस्कारहीन हों, जहाँ बड़ों का सम्मान न हो, जहाँ मान-मर्यादा और सत्पुरूशों की पूजा का अभाव हो, जहाँ गुरूवाचानोंकी अनुगूँज न हो और जहाँ हर क्रिया में व्रुद्धजनों एवं गुरुवचनों को साक्षीम बनाया जाय! उस घर में, संम्बंधों में मधुरता नही रहती! घर के अन्दर कलियुग प्रवेश कर जाता है! कलियुग का मतलब ही है कि जहाँ कल्हप्रिय लोग रहते हों, जहाँ दिन रात झगड़े ही झगड़े होते रहते हों, जहाँ अंहकार, स्वार्थ, ईर्ष्या द्वेष और प्रतिशोध की भावनाएं हों, जहाँ कोई किसी के साथ मिलाकर बैठना नहीं चाहता तो समझ लीजीय कि वहाँ अधर्म का साम्राज्य ऐसे होने लगा है।
ऐसे में विनाश से बचने के लिए एक ही उपाय है वह है - माता-पिता और व्रुद्धाजनों की सेवा तथा गुरुवचनों पर चलना! वेद में भी कहा गया है कि अपने बडों के अनुनय बनो! उनकी अच्छाइयों को ग्रहण करो! जिसे बडों का सम्मान करना, उन्हें आदर देना आ गया, समझो कि उसके जीवन में माधुर्य आ गया और फिर वह माधुर्य हर सम्बन्ध को मधुर बनाएगा। यही है क्ष्रेष्ट, सुखद और सुसरपन्न जीवन जीने की कला है !
पूज्य सुधांशु जीं महाराज
धर्मदूत सितंबर २००७ से लिया