संसार में हर वस्तु का मूल्य चुकाना होता हे ! बिना ताप किये कष्ट सहे आप अधिकार, पद, प्रतिष्ठा, सत्ता, सम्पति, शक्ति प्राप्त नहीं कर सकते, अत: आपको तपस्वी होना चाहिए आलसी, आराम पसंद नहीं! जीवन के समस्त सुख आपके कठोर पर्रिश्रम के नीचे दबे पड़े हैं, इसे हमेशा याद रखिए!
पूज्य सुधांशु जी महाराज
जीवन संचेतना दिसम्बर ,२००७
Monday, December 31, 2007
Tuesday, December 18, 2007
कम मत होने दो, बहुत जरूरी है
अपने अन्दर से कभी कम होने मत देना
प्रेम के भाव भाव को,
शांति के स्वभाव को,
ईश के प्रभाव को,
श्रद्धा के सद्भाव को!
बहुत जरुरी है
प्रेम के भाव भाव को,
शांति के स्वभाव को,
ईश के प्रभाव को,
श्रद्धा के सद्भाव को!
बहुत जरुरी है
परिवार के लिए शांति ,
समाज के लिए क्रांति ,
जीवन के लिए उन्नति,
सफलता के लिए सम्मति!
Param Pujya Sudhansuji Maharaj
समाज के लिए क्रांति ,
जीवन के लिए उन्नति,
सफलता के लिए सम्मति!
Param Pujya Sudhansuji Maharaj
Thursday, December 6, 2007
डर और साहस - Fear and Adventure
डर और साहस के बीच में एक लाइन होती है जिस के एक तरफ डर होता है और दूसरी तरफ साहस! अगर आप राक्षस रूपी डर से डर गए तो आप अपने लक्ष तक नहीं पहुंच सकते और अगर आपने साहस से काम लिया तो आप अपने लक्ष को जलदी पा सकती हैं! इसलिए डरो मत ओर साहस से काम लेकर आगे आगे बढ़ते जाओ!
Param Pujya Guru Sudhanshu Ji Maharaj
Param Pujya Guru Sudhanshu Ji Maharaj
Monday, October 22, 2007
भूल गए
क्या कभी आपने सोचा है -
सत्ता की चाह में सत्य को भूल गये।
मान की चाह में ज्ञान को भूल गये।
धन की चाह में तन को भूल गये।
सुविधा की चाह में सुख को भूल गये।
साधन की चाह में साध्य को भूल गये।
यश की चाह में ईश को भूल गये।
सपनों की चाह में अपनों को भूल गये।
पूज्य सुधांशु जी महाराज
सत्ता की चाह में सत्य को भूल गये।
मान की चाह में ज्ञान को भूल गये।
धन की चाह में तन को भूल गये।
सुविधा की चाह में सुख को भूल गये।
साधन की चाह में साध्य को भूल गये।
यश की चाह में ईश को भूल गये।
सपनों की चाह में अपनों को भूल गये।
पूज्य सुधांशु जी महाराज
Saturday, October 13, 2007
आत्मकल्याण के सूत्र
शुन्य के साथ कितने भी शुन्य जोडों लेकिन उनका कोई मूल्य नहीं। इसी प्रकार संसार की सारी भौतिक संपदा आपके पास हो लेकिन परमात्मा के बिना उसका कोई मूल्य नहीं।
उपयोगी है :
(१) भोजन, जो पच जाय।
(२) धन, जो जीवन में काम आए।
(३) रिश्ता, जिसमें प्रेम हो।
भगवान् यदि परिक्षा लेटा है तो पहले योग्यता भी देता है।
वह व्यक्ति धरती की शोभा बनता जो अवसर को पहचाने और जीवन की सबसे कीमती वस्तु समय को व्यर्थ न जाने दें।
एकांत और मौन व्यक्ति को महान बनाता है।
बुराई इसलिए नहीं पनपती कि बुरा करने वाले लोग बढ़ गये हैं वरन इसलिए पनपती है कि उसे सहन करनेवाले लोग बढ़ गये हैं।
संगठित होकर किसी महान लक्ष्य को पाने का मूलमंत्र है एक दुसरे को सह लेना।
पूज्य सुधान्शुजी महाराज
भगवान् की बनाई मूर्तियों में भगवान् को खोजें ,स्मरणीय
इन्सान के हाथों से पत्थर से गढी हुई मूर्ति में हमने भगवान को तराशने की कोशिश की लेकिन भगवान के हाथों से बने हुए बिलखते मासूम बच्चों में हम अपने परमात्मा को नहीं देख पाए यह एक दुर्भाग्य है। आज उस भगवान को मासूमों के अन्दर ढूढने की आवश्यकता है। इन मासूम बच्चों की सेवा करते हुए परमात्मा को ढूढने की कोशिश कर।
स्मरणीय
जैसे ऐक पत्थर को तराशने से सुन्दर मूर्ति बन सकती है ऐसे ही कर्मों के सहारे ज़िन्दगी को तराशने से ज़िन्दगी का स्वरूप बहुत सुन्दर बन सकता है।
बडों के प्रति सम्मान की भावना , आत्मीयजनों के प्रति कोमलता ,स्वयं के प्रति निरीक्षण की भावना रखते हुए आत्मचिंतन के शीशे में अपने को रोज निहार।
धर्मदूत अप्रेल २००६
Friday, October 12, 2007
लगन और द्रढता से मिलती है -सफ़लता
लगन से व्यक्ति गगन तक पहुंच जाता है और द्रढता से चट्टान की भाँती मजबूत बन जाता है। धुन के धनी और द्रढनिश्च्यी, सर्व श्रेष्ठ, धनुधर अर्जुन को चिडिया की आंख की छोटी सी पुतली ही दिखाई दीं अन्य कोई द्रश्य नही दिखा। इसी तरह भगवान् के भगत को दुनिया की हर वस्तु में वह वस्तु न दिखकर जब उसको बनाने वाला भगवान् दिखाई देने लगता है तो भक्ति फलित होने लगती है।
Thursday, October 11, 2007
प्रात: स्मरण
Wednesday, October 10, 2007
इच्छा
किसी चीज का ध्यान करोगे तो संग पैदा होगा ,
संग से कामना पैदा होगी
कामना से लोभ बढेगा
कामना न पूरी होने पर क्रोध बढेगा
क्रोध से सम्मोहन बढेगा
अच्छे बुरे का होश नहीं रहेगा तथा
अपने स्वरूप का ध्यान नहीं रहेगा
अंत में बुद्धि का विनाश हो जाएगा।
उन्नति का पाथ
आत्मसंशोधन तथा उन्नति का पाथ
किसी के ह्रदय में व्यर्थ का आघात न करना।
अपने व्यवहार से कभी भी किसी के मन को व्यथा न पहुंचाना।
गुलाब के समान काँटों से क्षत विक्षत होकर भी सभी को सुगंध का दान देना।
किसी की प्रशंसा स्तुति से पिघलना मत एवं
किसी के द्वारा की गई आलोचना से उबलना मत ,
आलोचना, आत्मसंशोधन तथा उन्नति में सहायता
पहुँचाती है एवं विवेक बुद्धि को जाग्रत रखती है।
आचार्य सुधांशु जीं महाराज
छायाचित्रमे विश्व जाग्रति मिशन सिंगापुर परिवार - श्रद्धापर्व
बन्धन ,ठोकर
इन्सान अनेकों बंधनों की बेडियों में बंधकर संसार में आता है ! जन्म से ही संघर्ष की शुरूआत हो जाती है ! लेकिन संघर्ष की घड़ी में स्वयं का साहस और प्रभु की प्रेरणा,अपना पुरूषार्थ और प्रभु की प्रारथना से ही सफ़लता का सवेरा प्राप्त होता है !
दुनिया में समझाने के लिए बहुत ग्रन्थ हैं ,समझाने वाले संत भी बहुत हैं और जिंदगी को शिक्षा देने वाली ठोकरें भी बहुत हैं लेकिन दुनिया में फिर भी ऐसे लोग हैं ,जो ठोकरों पर ठोकर खाते रहते हैं ,पाताल में गिरते जाते हैं ,पर अपने आपको संभाल नहीं पाते !
दुनिया में समझाने के लिए बहुत ग्रन्थ हैं ,समझाने वाले संत भी बहुत हैं और जिंदगी को शिक्षा देने वाली ठोकरें भी बहुत हैं लेकिन दुनिया में फिर भी ऐसे लोग हैं ,जो ठोकरों पर ठोकर खाते रहते हैं ,पाताल में गिरते जाते हैं ,पर अपने आपको संभाल नहीं पाते !
Sunday, September 30, 2007
मानव शरीर ,भगवान का नाम ,.शक्ति ,सेवा
मानव शरीर केवल सुख भोगने और आराम करने के लिए नहीं है , यह तो एक बहुत बडे उद्देश्य के लिए मिला है और वह उद्देश्य है -सेवा,सिमरन और सत्संग के द्वारा स्वयं भी तरे और दूसरों को भी इस भवसागर से तारे !जो भोगी होते हैं वे साधक नहीं अपितु परमात्मा के मार्ग में बाधक होते हैं !
****
जैसे सुर्य का प्रकाश गुफा के अन्दर का अन्धकार समाप्त कर देता है , उसी प्रकार भगवान के नाम का संकीर्तन एवं भजन का प्रभाव ह्रदय रूपी गुफा में प्रवेश कर दुःखों के अन्धकार को मिटा देता है !
***
मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति सुविचार हैं ! जिसके विचार सुविचार बन जाते है वह महान लक्ष्य को प्राप्त करता है !
***
उन हाथों में ईश्वरीय शक्ति आ जाती है जो ब्रद्धों , असहायों और पीडितों की सेवा के लिए उठते हैं !उन पैरों में चलाने की क्षमता बढ़ जाती है जो आपको भगवान की कथा सत्संग में ले जाते हैं !
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जैसे सुर्य का प्रकाश गुफा के अन्दर का अन्धकार समाप्त कर देता है , उसी प्रकार भगवान के नाम का संकीर्तन एवं भजन का प्रभाव ह्रदय रूपी गुफा में प्रवेश कर दुःखों के अन्धकार को मिटा देता है !
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मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति सुविचार हैं ! जिसके विचार सुविचार बन जाते है वह महान लक्ष्य को प्राप्त करता है !
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उन हाथों में ईश्वरीय शक्ति आ जाती है जो ब्रद्धों , असहायों और पीडितों की सेवा के लिए उठते हैं !उन पैरों में चलाने की क्षमता बढ़ जाती है जो आपको भगवान की कथा सत्संग में ले जाते हैं !
Saturday, September 29, 2007
Thursday, September 27, 2007
डर ,हार ,जीत ,कठ्नाई ,
जीत और हार के बीच में डर, जों हार से डर गया समझो जीत हार गयी, जो हार से नहीं डरा जीत -जीत गयी!
कठ्नाई को कठ्नाई मत समझो, विरोध करने की शक्ती भी रखो, सम्झोतावादी मत बनो!
कठ्नाई को कठ्नाई मत समझो, विरोध करने की शक्ती भी रखो, सम्झोतावादी मत बनो!
परम पूज्य सुधान्शुजी महाराज
Wednesday, September 26, 2007
सम्बन्धों में माधुर्य उत्पन्न कीजीय
सम्बन्धों में माधुर्य उत्पन्न कीजीय
जहाँ धर्म है, जहाँ सेवा का पवित्र भाव है और जहाँ बड़ों के महान गुंण और आदर्शों को जीवन का आधार बनाया जाता है, जहाँ गुरू का मान और उनकी पूजा की जाती है उस घर में कभी विघटन नहीं होता वरन निरन्तर सम्बन्धों में माधुर्य बढ़ता ही जाता है! ऐसे परिवारों में भाई भाई के बीच दीवारें नहीं बना करती, भाई भाई के खून का प्यासा नहीं होता! चाणक्य ने कहा है कि आप अपने बच्चे को धन दो या न दो लेकिन उत्तम शिक्षा और सुसंस्कार अवश्य दो! संस्कारों के अभाव में धन बच्चों को बिगाड़ने में हे सहयोगी बनता है!
जिस घर में बच्चे संस्कारहीन हों, जहाँ बड़ों का सम्मान न हो, जहाँ मान-मर्यादा और सत्पुरूशों की पूजा का अभाव हो, जहाँ गुरूवाचानोंकी अनुगूँज न हो और जहाँ हर क्रिया में व्रुद्धजनों एवं गुरुवचनों को साक्षीम बनाया जाय! उस घर में, संम्बंधों में मधुरता नही रहती! घर के अन्दर कलियुग प्रवेश कर जाता है! कलियुग का मतलब ही है कि जहाँ कल्हप्रिय लोग रहते हों, जहाँ दिन रात झगड़े ही झगड़े होते रहते हों, जहाँ अंहकार, स्वार्थ, ईर्ष्या द्वेष और प्रतिशोध की भावनाएं हों, जहाँ कोई किसी के साथ मिलाकर बैठना नहीं चाहता तो समझ लीजीय कि वहाँ अधर्म का साम्राज्य ऐसे होने लगा है।
ऐसे में विनाश से बचने के लिए एक ही उपाय है वह है - माता-पिता और व्रुद्धाजनों की सेवा तथा गुरुवचनों पर चलना! वेद में भी कहा गया है कि अपने बडों के अनुनय बनो! उनकी अच्छाइयों को ग्रहण करो! जिसे बडों का सम्मान करना, उन्हें आदर देना आ गया, समझो कि उसके जीवन में माधुर्य आ गया और फिर वह माधुर्य हर सम्बन्ध को मधुर बनाएगा। यही है क्ष्रेष्ट, सुखद और सुसरपन्न जीवन जीने की कला है !
पूज्य सुधांशु जीं महाराज
धर्मदूत सितंबर २००७ से लिया
Saturday, September 22, 2007
वाणी की कड़वाहट ,मिठास ,शांती ,तीरथ
सोचो हमारी कड़वाहट कहाँ है उस बात को कहने का ढंग बदल लो बस वाद विवाद खतम होजायेगा !
बात ऐसी बोलो कि वाणी में मिठास हो शांती हो !
हर पतनी अगर सुख चाहती है तो अपने पति से मीठी बात और शांति पूर्वक शब्ध बोले !
ऐसी वाणीँ तीरथ कहलाती है !
बात ऐसी बोलो कि वाणी में मिठास हो शांती हो !
हर पतनी अगर सुख चाहती है तो अपने पति से मीठी बात और शांति पूर्वक शब्ध बोले !
ऐसी वाणीँ तीरथ कहलाती है !
विषय वासनायें
मनुष्य के पास ज्ञान के लिए एक मात्र साधन यह बुद्धि है! यदि यह बुद्धि विषय वासनाओं से मलिन हो जाए तो वह मनुष्य को दुःख सागर में डुबो देती है! और यदि यह बुद्धि आत्मानुरागिणी हो जाए तो यह ऋतम्भरा नाम वाली बनकर मनुष्य को संसार के दुस्तर महासागर से पार लगाने में अति सहायक हो जाती है!
Friday, September 21, 2007
खोज में ,बुद्धि ,ज्ञान
मनुष्य भाग रहा है कुछ अज्ञात को पाने की खोज में! पर वह खोज क्या रहा है यह वह भी नहीं जानता, पर फिर भी भाग रहा है!
जीवन है तो बुद्धि है! बुद्धि है तो जिज्ञासा है! जिज्ञासा है तो ज्ञान है! ज्ञान ही जीवन का मधुरतम फल है!
जिस प्रकार विश्व को जीतने की इच्छा रखने वाले को सर्वप्रथम स्वयं को जीतना चाहिए, क्योंकि खुद को जीत लेने के बाद कुच्छ भी जीतना शेष नहीं रह जाता! उसी प्रकार ज्ञान चाहने वाले को सर्वप्रथम अपने बारे में जानना चाहिए!
जीवन है तो बुद्धि है! बुद्धि है तो जिज्ञासा है! जिज्ञासा है तो ज्ञान है! ज्ञान ही जीवन का मधुरतम फल है!
जिस प्रकार विश्व को जीतने की इच्छा रखने वाले को सर्वप्रथम स्वयं को जीतना चाहिए, क्योंकि खुद को जीत लेने के बाद कुच्छ भी जीतना शेष नहीं रह जाता! उसी प्रकार ज्ञान चाहने वाले को सर्वप्रथम अपने बारे में जानना चाहिए!
लक्षमी कहाँ रहती है
लक्षमी कहाँ रहती है
जिस घर में सब प्रसन्न रहते हैं लक्षमी वहाँ रहती है! जिस घर में अशान्ती, अवव्यवस्था हो, नारी आंसू बहाये-बच्चे बड़ों का सत्कार न करें, धर्म से विमुख हों,बड़े गुस्सा करें, तो लक्ष्मी वहाँ एक दरवाजे से आयगी और दूसरे दरवाजे से निकल जायगी टिक भी नहीं पायेगी और बीमारी देकर जायेगी! इसलिय घर में शांती बनाकर रखो!
जिस घर में सब प्रसन्न रहते हैं लक्षमी वहाँ रहती है! जिस घर में अशान्ती, अवव्यवस्था हो, नारी आंसू बहाये-बच्चे बड़ों का सत्कार न करें, धर्म से विमुख हों,बड़े गुस्सा करें, तो लक्ष्मी वहाँ एक दरवाजे से आयगी और दूसरे दरवाजे से निकल जायगी टिक भी नहीं पायेगी और बीमारी देकर जायेगी! इसलिय घर में शांती बनाकर रखो!
Thursday, September 20, 2007
गिडगिडाओ मत ,झुको मत ,भय प्रेम
- दुष्ट्ता के सामने मत गिडगिडाओ , अन्याय के सामने झुको मत , जो दुष्टता को बढावा देते हैं विरोध नहीं कर सकते तो उपेक्षा करो ,प्रशंसा करो तो सज्जन की करो , दुष्टता को बढावा मत दो ,उंचा इनसान वह है जो दुष्टता के सामने झुके नहीं !
बुरे आदमी की ताक़त भय -अच्छे आदमी की ताक़त प्रेम -उंचा वह है जो बुरे से लड़े,समस्या को लरकारना सीखो !
पूजा किसी की करो भगवान् एक हैं ,धरती पर स्वर्ग बनाओ
- पूजा किसी की भी करो पूजा तो एक की होगी ,जैसे सोना एक ही है आभूषण अनेक होते हैं ! जो-जो जैसी भावना से भक्त मेरी भक्ती करता है में उसी की श्रद्धा देता हूँ !
हाथी धूल उडाता चलता है ,मगर धूल में से मिस्री नहीं उठा सकता -वह चींटी कर सकती है ! यह मत सोचो कि क्या करूं -बादल पेड यह नहीं देखते कि कोई लेने वाला है या नहीं -आप स्वर्ग से बिछडे भाई हो ,आप मिल जाओ और धरती पर स्वर्ग बना दो !
दुःख ,भगवान ,सेवा
दुःख में सब को परमात्मा की याद आती है ,जब शक्ति ,बुद्धि ,सामर्थ काम नहीं करता तब मनुष्य भगवान के पास जाता है !
दूसरों के दुःख दूर करो ,अगर तुम किसी का दुःख नहीं देखते तो भगवान भी तुम्हारे दुःख की तरफ नहीं देखेंगे !
सेवा खुद करो ,दूसरे को इशारा मत करो ,खुद दूसरे के दुःख मिटाओ -सब की पीडा तुम हरोगे तो तुम्हारा दुःख भगवान दूर करेंगे !
भगवान से मांगो सुख-दुःख में साथ दो -सुख दिया है तोभागावान की कृपा है मगर आस पास जो दुखी है उसका दुःख दूर करो ,सेवा करो -भक्ती में मन लगे न लगे मगर सेवा जरूर करो ! सेवा भगवान् पूरी स्वीकार करेंगे -अगर भक्त हो तो सेवा करो !
दूसरों के दुःख दूर करो ,अगर तुम किसी का दुःख नहीं देखते तो भगवान भी तुम्हारे दुःख की तरफ नहीं देखेंगे !
सेवा खुद करो ,दूसरे को इशारा मत करो ,खुद दूसरे के दुःख मिटाओ -सब की पीडा तुम हरोगे तो तुम्हारा दुःख भगवान दूर करेंगे !
भगवान से मांगो सुख-दुःख में साथ दो -सुख दिया है तोभागावान की कृपा है मगर आस पास जो दुखी है उसका दुःख दूर करो ,सेवा करो -भक्ती में मन लगे न लगे मगर सेवा जरूर करो ! सेवा भगवान् पूरी स्वीकार करेंगे -अगर भक्त हो तो सेवा करो !
Wednesday, September 19, 2007
भगवान का कानून
भगवान का कानून
सब भगवान से भगवान का कानून बदलने की कहते हैं! इन्सान बोता है बबूल का बिज तो आम का पेड कहाँ से होगा! हमें सावधान रहना चाहिये जो बोयेंगे वही मिलेगा! इस लिय भगवान से उसका कानून बदलने को मत कहो!
सब भगवान से भगवान का कानून बदलने की कहते हैं! इन्सान बोता है बबूल का बिज तो आम का पेड कहाँ से होगा! हमें सावधान रहना चाहिये जो बोयेंगे वही मिलेगा! इस लिय भगवान से उसका कानून बदलने को मत कहो!
परम पूज्य सुधान्शु जी महाराज
प्रभू से प्रार्थना
प्रभू से प्रार्थना
" हें प्रकाशस्वरूप प्रभु ! मेरे ह्रदय मैं उतर आओ ! अपना प्रकाश, अपना ज्ञान, अपनी कृपा मुझे प्रदान करो , ....फिर हम सभी आनन्द से भरपूर हो जायें! मै, मेरे परिवार, मेरे समाज की तू ज्योति बनकर मेरे ह्रदय में उतर, जिससे में आनन्द से परिपूर्ण हो जाऊं! मेरे स्वामी, रक्षक सदैव हमारी रक्षा करना प्रभु, बार बार हमें जगाना जिससे हम दुनिया में खो न जायं! अगर चोट लगाकर भी हमें जगाना पडे तो हमें जरूर जगाना जिससे हम जागकर इस संसार में ठीक ढंग से जीं सकें, अन्यथा अनेक प्रकार के गुन्हा करने में हम तत्पर रहते हैं! हमें यह महसूस हो कि किसी का साथ, न मिले, लेकिन तेरा साथ सदेव हमारे साथ है!"
" हें प्रकाशस्वरूप प्रभु ! मेरे ह्रदय मैं उतर आओ ! अपना प्रकाश, अपना ज्ञान, अपनी कृपा मुझे प्रदान करो , ....फिर हम सभी आनन्द से भरपूर हो जायें! मै, मेरे परिवार, मेरे समाज की तू ज्योति बनकर मेरे ह्रदय में उतर, जिससे में आनन्द से परिपूर्ण हो जाऊं! मेरे स्वामी, रक्षक सदैव हमारी रक्षा करना प्रभु, बार बार हमें जगाना जिससे हम दुनिया में खो न जायं! अगर चोट लगाकर भी हमें जगाना पडे तो हमें जरूर जगाना जिससे हम जागकर इस संसार में ठीक ढंग से जीं सकें, अन्यथा अनेक प्रकार के गुन्हा करने में हम तत्पर रहते हैं! हमें यह महसूस हो कि किसी का साथ, न मिले, लेकिन तेरा साथ सदेव हमारे साथ है!"
Tuesday, September 18, 2007
माया और माया पति
माया और माया पति के बीच में एक रेखा है ,उससे निकलना ही मुशकिल है , जब आदमी भवंर में फँस जाता है तो गोल -गोल घूमता रहता है , उस समय उसको किसी का सहारा चाहिये - माया को तोड़ कर जब आगे बढेगा तो माया पति अपनी तरफ खीचेंगे -माया को पार करना ही कठिन है ,मगर गुरू के द्वारा एक ही झटके में बाहर हो जायेगा !इस लिये गुरू जरूरी है !
परिस्थितियाँ ,सुख और दुःख
परिस्थितियाँ, सुख और दुःख
परिस्थितियों से तालमेल बैठाने के लिये अपनी सहनशक्ति को बढाना होता है, यही सदगुण है! इससे कमजोरी नही आयेगी बल्कि आपका बल बढेगा!
सुख और दुःख की परिभाषा यह है कि जहाँ तक तुम सह सकते हो वहां तक तो सुख है, जहाँ से सहना मुश्किल हो जाता है, वहाँ से दुःख शुरू हो जाता है, और यह सहने की शक्ति सबकी अलग-अलग है। कोई थोड़े दुःख में घबरा जाता है, कोई बहुत दुःख आये तो भी नहीं घबराते हैं।
परिस्थितियों से तालमेल बैठाने के लिये अपनी सहनशक्ति को बढाना होता है, यही सदगुण है! इससे कमजोरी नही आयेगी बल्कि आपका बल बढेगा!
सुख और दुःख की परिभाषा यह है कि जहाँ तक तुम सह सकते हो वहां तक तो सुख है, जहाँ से सहना मुश्किल हो जाता है, वहाँ से दुःख शुरू हो जाता है, और यह सहने की शक्ति सबकी अलग-अलग है। कोई थोड़े दुःख में घबरा जाता है, कोई बहुत दुःख आये तो भी नहीं घबराते हैं।
परम पूज्य सुधान्शुजी महाराज
पदार्थ उपयोग के लिय हैं
पदार्थ भगवान ने दिये हैं उपयोग करने के लिये ,लेकिन उनकी वासना मन में रखने के लिये पदार्थ नहीं होने चाहिये ! हाथ से कोई चीज छूट गई तो रोने बैठ गये , मिल गई तो बहुत खुश हो गये ,चाहे महल में रहें या झोपड़ी में ,न महल का इजहार होन, न झोपड़ी की निराशा हो ,जहाँ भी हैं अपने प्रभु की कृपा में हैं !
जीवन है जीने का नाम
जीवन है जीने का नाम संसार में कर्त्तव्य निभाना और फिर संसार के प्रति कोई कामना नहीं रखकर अपने जीवन को जीना ,बस ये जीवन का ढंग सही है. कामनायें रखोगे समस्यायें खडी होंगी ! बेटा बडा होगा मेरी सेवा करेगा , ऐसी कामना रखोगे और यदि फिर सेवा नहीं होगी तब दुःख होगा 1 अगर सेवा होगी भी तो जितनी आप चाहते हैं ,उतनी नहीं होगी तब भी दुःख होगा, मतलब यह् है कि जब कामनायें पाली जाती हैं तो वह फिर दुख देती हैं ! जब जब इंसान कामनाओं में कुछ पाने की इच्छा में ज्यादा से ज्यादा अनुर्क्त हो जाताहै तब बंधन आता है, दुःख मिलता है !
Vishwa Jagriti Mission, Singapore
Vishwa Jagriti Mission, Singapore
Monday, September 17, 2007
क्षमा करिए और भूल जाईए
किसी की गलती को अन देखा करना सीखिय फोर्गेट एंड फोरगिव क्षमा करिए और भूल जाईए ! दूसरों को सुधारने की अपेक्षा स्वय कॉ बदलना सरल एवं उचित है ! अपनी सुख शांती के लिए दूसरों की बातों पर तभी ध्यान देना चाहिय जब वह महत्वपूर्ण हों वरना भूलादो !
Saturday, September 15, 2007
जीवन है जीने का नाम
जीवन है जीने का नाम संसार में कर्त्तव्य निभाना और फिर संसार के प्रति कोई कामना नहीं रखकर अपने जीवन को जीना ,बस ये जीवन का ढंग सही है 1 कामनायें रखोगे समस्यायें खडी होंगी ! बेटा बडा होगा मेरी सेवा करेगा , ऐसी कामना रखोगे और यदि फिर सेवा नहीं होगी तब दुःख होगा 1 अगर सेवा होगी भी तो जितनी आप चाहते हैं ,उतनी नहीं होगी तब भी दुःख होगा 1मतलब यह् है कि जब कामनायें पाली जाती हैं तो वह फिर दुख देती हैं ! जब जब इंसान कामनाओं में कुछ पाने की इच्छा में ज्यादा से ज्यादा अनुर्क्त हो जाताहै तब बंधन आता है ,दुःख मिलता है !
अज्ञान के अंधेरे से लडाई
जीवन में अज्ञान के अंधेरे से कभी लडाई मत मोल लेना ,केवल ज्ञान का दीपक जलाने की हमेशा कोशिश कर्ना ! क्योंकि ज्ञान को बढाओगे तो अज्ञान अपने आप मिटना शुरू हो जाएगा ! अज्ञान का अंधेरा कोई कुडा-कर्कट नहीं है कि उठाकर बाहर फेंक दिया जाए ! अंधेरा अपने आप में कुछ भी नहीं है, प्रकाश का अभाव ही अंधेरा है !
वाणी
आपकी वाणी सत्य से प्रतिष्ठित हो, प्रिय हो और हितकर हो। अपनी वैन के ज्ञान के मधुर शब्दों से सजाओ।
सुविचार - चिंता - धनवान - बोलना - प्रभाव
चिंता उन्हें होती हे जिन्हें ईश्वर पर विश्वास नहीं होता !
दूसरे के लिए ह्र्दय को संकीर्ण बनाकर हम निर्धन और उसे विशाल बनाकर हम धनवान बनं जाते हैं !
जब भी इंसान बोले तो ह्र्दय का प्रेम और म्स्तिष्क की बुद्धिमता, समझदारी दोनों का मेल मिलाकर ही बोलना चाहिए !
प्रभाव ही ऐसा विचित्र होता है कि जो चीज सच नहीं वह सच नजर आती है !
दूसरे के लिए ह्र्दय को संकीर्ण बनाकर हम निर्धन और उसे विशाल बनाकर हम धनवान बनं जाते हैं !
जब भी इंसान बोले तो ह्र्दय का प्रेम और म्स्तिष्क की बुद्धिमता, समझदारी दोनों का मेल मिलाकर ही बोलना चाहिए !
प्रभाव ही ऐसा विचित्र होता है कि जो चीज सच नहीं वह सच नजर आती है !
Monday, September 10, 2007
Acceptance of Prayers
'Don't ever imagine that if you have not been rewarded. Your prayers have not been heard. The God has already accepted your prayers but the rewards will come in proper time. In His court, no prayers remain answered. He is kind and judicious'
Vishwa Jagriti Mission
Vishwa Jagriti Mission
ईश्वर का नाम
ईश्वर का नाम
जिस आदमी की ईश्वर के नाम में रूचि है,
भगवान में जिसकी लगन लग गयी है,
उसका संसार विकार अवश्य दूर होगा।
उस पर भगवान की कृपा अवश्य होगी।
जिस आदमी की ईश्वर के नाम में रूचि है,
भगवान में जिसकी लगन लग गयी है,
उसका संसार विकार अवश्य दूर होगा।
उस पर भगवान की कृपा अवश्य होगी।
संकल्प शक्ति
संकल्प शक्ति
इस संसार में प्रत्येक वस्तु संकल्प शक्ति परे निर्भर है।
जो व्यक्ति संकल्प का धनी है, उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।
इस संसार में प्रत्येक वस्तु संकल्प शक्ति परे निर्भर है।
जो व्यक्ति संकल्प का धनी है, उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।
ज्ञान के नेत्र
ज्ञान के नेत्र
ज्ञान के नेत्र खुलने से ग्रन्थ समाज मे आता है,
उसका रहस्य खुलता है,
पर भाव के बिना ज्ञान अपना नहीं होता।
ज्ञान के नेत्र खुलने से ग्रन्थ समाज मे आता है,
उसका रहस्य खुलता है,
पर भाव के बिना ज्ञान अपना नहीं होता।
Saturday, September 8, 2007
रागिनी पर झुमो
रागिनी पर झुमो
बहुत से लोग अपने दुःखों के गीत गाते है,
दिवाली हो या होली हो सदा मातम मनाते है,
दुनिया उन्हीं की रागिनी पर झूमती हरदम,
जो चिंताओं में भी बैठ कर रागिनी सुनाया करते है।
बहुत से लोग अपने दुःखों के गीत गाते है,
दिवाली हो या होली हो सदा मातम मनाते है,
दुनिया उन्हीं की रागिनी पर झूमती हरदम,
जो चिंताओं में भी बैठ कर रागिनी सुनाया करते है।
Sunday, August 26, 2007
भगवान का मंदिर
भगवान का मंदिर
जिसे मान सन्मान मिलने पर अकड़ना नही आता और अनादर मिलने पर जो दुःखी नहीं होता, जो भला करके प्रसन्न होता है, जिसमे सदगुण - उदारता, सरलता और गंभीरता है, जिसके स्वभाव में बदला लेना और वैर रखना नहीं है, ऐसे व्यक्ति का ह्रदय भगवान का मंदिर है।
जिसे मान सन्मान मिलने पर अकड़ना नही आता और अनादर मिलने पर जो दुःखी नहीं होता, जो भला करके प्रसन्न होता है, जिसमे सदगुण - उदारता, सरलता और गंभीरता है, जिसके स्वभाव में बदला लेना और वैर रखना नहीं है, ऐसे व्यक्ति का ह्रदय भगवान का मंदिर है।
सुधनम
सुधनम
चाणक्य कहते है कि जिसका धन शुद्ध है, उसके घर मे सुख सम्पत्ति है।
पुराने लोगों ने चार शब्ध कहे थे जो बडे महत्त्व के है। चार शब्दों पर गोइर करना "धृत नया धान पुराने घर कुलवंती नार।
चाणक्य कहते है कि जिसका धन शुद्ध है, उसके घर मे सुख सम्पत्ति है।
पुराने लोगों ने चार शब्ध कहे थे जो बडे महत्त्व के है। चार शब्दों पर गोइर करना "धृत नया धान पुराने घर कुलवंती नार।
Thursday, August 23, 2007
भक्ति
भक्ति निष्काम भाव है आस्था का, ___ का, समर्पण का, सेवा का, बलिदान ___-- करने का, बदले में कुछ ना चाहने का, आध्यात्मिकता का प्रथम सोपान है।
Sunday, August 19, 2007
स्वदेश का प्यार
भरा नही जो भावों से बहती जिसमें रसधार नही।
हृदय नहीं वह प्थ्त्तर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नही ।
हृदय नहीं वह प्थ्त्तर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नही ।
Thursday, August 16, 2007
अहिंसक
- मनष्य को अहिंसक होना चाहिए, हिंसक नहीं।
अहिंसक होने से मुनष्य को लाभ मीलता है कि उसका वैर पुरी तरह से समाप्त हो जता है।
वीरता का संदेश एवम परिभाषा
- वीरता कि अदभूत शक्ति शरीर मे नही रुधिर मे समायी होती है। वीरों के रक्त में नूतन उर्जा शक्ति का स्त्रोत सदैव रहता है। वीरों के बढते क़दमों को रोक पाना कठिन ही नही अपितु असम्भव है। उनकी भुजाए संकट कि घड़ियों मे तीव्र गति से फडकती है। वीरों के मस्तिष्क में विश्वास पूरित उहा, कुछ गुनगुनाहट, कुछ खिलखिलाहट, तरंग उमंग, कुछ सपने और इंद्र धनुषी रंगो मे डूबी हुई कल्पनाए होती है।
चिन्ता
- चिन्ता ता की कीजिए जो अनहोनी होय,
इस मार्ग संसार पे नानक थिर न कोय॥
Vishwa Jagriti Mission Singapore
श्री गणेशाय नमः
Tuesday, August 14, 2007
सफलता कि सुरभि
सफलता कि सुरभि
आधुनिक युग मे इन्सान कि समस्त कल्पनोक का केंद्र बिन्दु कल है। इश्वर भक्त इश्वर कि उपासना मे नही अपितु कल कि आराधना मे लगा हुआ है। उत्तम स्वस्थ एवम सफलता का इच्छुक नवयुवक निज तथा नित कर्थ्व्योम से विमुख होकर कल (भाविश्व्या) कि कल्पना मे तल्लीन है। नमन्ना तो है कुच्छ कार गुजरने कि परंतु उसके अनुरुप स्वयम कि तईयारी कल पर छोड़ दी जाती है।
सफलता के छाने वाले लोगो कल कि उपासना मे मत लगो। क्या तुम यह जानते भी हो कि तुम्हारा कल आएगा भी अथवा नही?
हे मानुष ! यदि तू सफलता प्राप्त करना चाहता है, महान बनने की तेरी तमन्ना है तो कल कि उपासना को छोडकर आज की आराधना कार।
www.vjms.net
आधुनिक युग मे इन्सान कि समस्त कल्पनोक का केंद्र बिन्दु कल है। इश्वर भक्त इश्वर कि उपासना मे नही अपितु कल कि आराधना मे लगा हुआ है। उत्तम स्वस्थ एवम सफलता का इच्छुक नवयुवक निज तथा नित कर्थ्व्योम से विमुख होकर कल (भाविश्व्या) कि कल्पना मे तल्लीन है। नमन्ना तो है कुच्छ कार गुजरने कि परंतु उसके अनुरुप स्वयम कि तईयारी कल पर छोड़ दी जाती है।
सफलता के छाने वाले लोगो कल कि उपासना मे मत लगो। क्या तुम यह जानते भी हो कि तुम्हारा कल आएगा भी अथवा नही?
हे मानुष ! यदि तू सफलता प्राप्त करना चाहता है, महान बनने की तेरी तमन्ना है तो कल कि उपासना को छोडकर आज की आराधना कार।
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