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Wednesday, October 10, 2007

उन्नति का पाथ



आत्मसंशोधन
तथा उन्नति का पाथ

किसी के ह्रदय में व्यर्थ का आघात न करना।

अपने व्यवहार से कभी भी किसी के मन को व्यथा न पहुंचाना।


गुलाब के समान काँटों से क्षत विक्षत होकर भी सभी को सुगंध का दान देना।

किसी की प्रशंसा स्तुति से पिघलना मत एवं
किसी के द्वारा की गई आलोचना से
उबलना मत ,
आलोचना, आत्मसंशोधन तथा उन्नति में सहायता
पहुँचाती है
एवं विवेक बुद्धि को जाग्रत रखती है।

आचार्य सुधांशु जीं महाराज


छायाचित्रमे विश्व जाग्रति मिशन सिंगापुर परिवार - श्रद्धापर्व


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