मानव शरीर केवल सुख भोगने और आराम करने के लिए नहीं है , यह तो एक बहुत बडे उद्देश्य के लिए मिला है और वह उद्देश्य है -सेवा,सिमरन और सत्संग के द्वारा स्वयं भी तरे और दूसरों को भी इस भवसागर से तारे !जो भोगी होते हैं वे साधक नहीं अपितु परमात्मा के मार्ग में बाधक होते हैं !
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जैसे सुर्य का प्रकाश गुफा के अन्दर का अन्धकार समाप्त कर देता है , उसी प्रकार भगवान के नाम का संकीर्तन एवं भजन का प्रभाव ह्रदय रूपी गुफा में प्रवेश कर दुःखों के अन्धकार को मिटा देता है !
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मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति सुविचार हैं ! जिसके विचार सुविचार बन जाते है वह महान लक्ष्य को प्राप्त करता है !
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उन हाथों में ईश्वरीय शक्ति आ जाती है जो ब्रद्धों , असहायों और पीडितों की सेवा के लिए उठते हैं !उन पैरों में चलाने की क्षमता बढ़ जाती है जो आपको भगवान की कथा सत्संग में ले जाते हैं !
Sunday, September 30, 2007
मानव शरीर ,भगवान का नाम ,.शक्ति ,सेवा
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