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Thursday, May 29, 2008

स्मरणीय -memorable

*तीसरी आँख प्रज्ञा की है ! जिसकी अन्दर की आँख खुली है वह कहीं ठोकर नहीं खा सकता !
*जब चिन्तन समाप्त हो जाता है तब व्यक्ती पशुलोक के धरातल पर जीता है !
*अगर स्वयं को कोसने ,प्रताडित करने और दबाने में लगे रहोगे टू कभी आगे न बढ़ सकोगे !
*जीवन में किसी को आगे बढ़ता देख कर ईर्षयका जागना स्वाभाविक है लेकिन अगर ईष्या को प्रतिस्पर्धा में बदल सको तब तुम सहज ही आगे बढ़ जाओगे !

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