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Sunday, February 1, 2009

समय

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    नम्बर ४१८

    आत्म जागरण का पथ

    जीवन बडा विचित्र हे , कब क्या होगा कुछ कहा नहीं जा सकता ! भविष्य में क्या होगा
    पता नहीं हे ! काल का रूप इतना भयंकर हे सब निगल जाता हे , संभाला जा सकता हे तो केवल वर्तमान को संभाला जा सकता हे ! जो क्षण चल रहा हे वही तो वर्तमान हे ,इसी को ठीक करना होगा !अपना रासता स्वंय बनाना होगा ! जीवन में उन्नति कर सकते हें जो स्वंय अपने को उपदेश दे सकते हें !

    धर्मदूत जनवरी २००९


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Posted By Madan Gopal Garga to Anand Dhamm Mumbai Maharashtra at 1/31/2009 05:54:00 PM

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